(1) आर्थिक समस्याओं को संख्याओं में व्यक्त करना: सांख्यिकी का प्रयोग करके हम अर्थशास्त्र की आर्थिक समस्याओं को संख्याओं में व्यक्त कर सकते हैं और संख्याओं का विश्लेषण करके परिणाम निकाल सकते हैं और भविष्य के लिए अनुमान भी लगा सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी देश के लोगों की आय, प्रति व्यक्ति आय, देश में बेरोजगारी की दर, देश में मुद्रास्फीति की दर आदि इन सब समस्याओं का सही तरीके से अध्ययन करने के लिए हमें संख्याओं की आवश्यकता है जो हमें सांख्यिकी का प्रयोग करने से प्राप्त होती हैं।
(2) आर्थिक आँकड़ों की परस्पर तुलना: सांख्यिकी का प्रयोग करके हम अर्थशास्त्र के अध्ययन के दौरान आर्थिक आँकड़ों की परस्पर तुलना कर सकते हैं। उदाहरण के लिए हम भारत की राष्ट्रीय आय की तुलना अमेरिका की राष्ट्रीय आय से कर सकते हैं। भारत की प्रति व्यक्ति आय की तुलना अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय से कर सकते हैं। इसी प्रकार किसी भी देश की राष्ट्रीय आय, प्रति व्यक्ति आय, बेरोजगारी की दर जैसी अनेक आर्थिक इकाइयों की हम सांख्यिकी का प्रयोग करके आपस में तुलना कर सकते हैं। इसके अलावा हम आर्थिक समस्याओं की समय के अनुसार भी तुलना कर सकते हैं। उदाहरण के लिए भारत जब स्वतंत्र हुआ, तब भारत की राष्ट्रीय आय, प्रति व्यक्ति आय, बेरोजगारी की दर आदि क्या थी और वर्तमान वर्ष में यह सब संख्याएँ क्या हैं, इसकी तुलना भी हम सांख्यिकी का प्रयोग करके कर सकते हैं।
(3) कारण-परिणाम संबंध स्थापित करना: आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए हम आर्थिक तत्वों के बीच कारण और परिणाम का संबंध स्थापित करते हैं। जिसके लिए हमें विश्लेषण करने के लिए संख्याओं की आवश्यकता होती है। जैसे यदि किसी व्यक्ति की आय बढ़ती है तो उसका उपभोग भी बढ़ेगा परंतु आय के बढ़ने से उपभोग की मात्रा में हुए परिवर्तन का सही विश्लेषण करने के लिए हमें आय और उपभोग की संख्यात्मक अभिव्यक्ति की आवश्यकता होती है, जो हमें सांख्यिकी का प्रयोग करने से प्राप्त होती है।
(4) आर्थिक सिद्धांतों का निर्माण: सांख्यिकी अर्थशास्त्र में आर्थिक सिद्धांतों के निर्माण में सहायता करती है। किसी भी सिद्धांत को बनाने से पहले उसका विश्लेषण किया जाता है तथा विश्लेषण में आर्थिक आँकड़ों की आवश्यकता पड़ती है, जो केवल संख्याओं के प्रयोग से संभव है।
(5) भविष्य के लिए अनुमान लगाना: सांख्यिकी का अर्थशास्त्र में प्रयोग करके हम भविष्य के लिए अनुमान लगा सकते हैं। उदाहरण के लिए हम पिछले 10 वर्ष में किसी देश की राष्ट्रीय आय की वृद्धि दर के आँकड़ों के आधार पर, आने वाले 5 या 10 वर्षों की वृद्धि दर का अनुमान लगा सकते हैं। इसी प्रकार हम देश के अंदर प्रति व्यक्ति आय, बेरोजगारी, पूंजी-निर्माण की दर आदि अनेक आर्थिक सूचकों का पूर्व अनुमान लगा सकते हैं।
(6) सरकार द्वारा नीति-निर्माण: अर्थशास्त्र में सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग करके किसी भी देश की सरकार देश के लिए आर्थिक नीतियों का निर्माण करती है। उदाहरण के लिए भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया सांख्यिकीय विश्लेषण से प्राप्त जानकारी के आधार पर ब्याज दर में परिवर्तन करता रहता है। भारत सरकार भी प्राप्त आँकड़ों के आधार पर अपनी कर नीति में संशोधन करती रहती है।
(7) आर्थिक संतुलन की प्राप्ति: अर्थशास्त्र का मुख्य उद्देश्य आर्थिक संतुलन की प्राप्ति करना होता है। एक उपभोक्ता के रूप में तथा एक उत्पादक के रूप में आर्थिक संतुलन की प्राप्ति हुई है या नहीं, यह ज्ञात करने के लिए हमें आर्थिक तत्वों की संख्यात्मक जानकारी की आवश्यकता पड़ती है, जो सांख्यिकीय विधियों के प्रयोग से ही संभव है।