“यह पूरा का पूरा ब्रह्मांड किसी ने नहीं बनाया. ना इसका कोई अंत है ना ही इसका कोई आरंभ है. यह अनंत काल से ऐसा ही है. अस्तित्व में है. और इसको बनाने वाला कोई नहीं है.”
यह सूचना पढ़कर सभी के मन में स्वाभाविक तौर पर एक प्रश्न उठता है कि कोई भी वस्तु बिना किसी सृजनात्मक शक्ति के, बिना किसी बनाने वाले के, कैसे अस्तित्व में हो सकती है?
बहुत ही अच्छा तर्क है और सभी का दिमाग इस बात को फटाफट मान लेता है, स्वीकार कर लेता है, कि हां, कैसे किसी बनाने वाले के बिना किसी वस्तु का अस्तित्व हो सकता है…
परंतु जैसे ही हम इसी तर्क को भगवान के ऊपर लगाने की कोशिश करते हैं तो सभी आस्तिक लोगों की तर्कशक्ति अचानक नष्ट हो जाती है. और बिना किसी कारण, बिना किसी तर्क और बिना किसी प्रमाण के वह अचानक ही मान लेते हैं कि अरे भगवान तो हमेशा से ही अस्तित्व में है, अजन्मा है, उसका कोई शुरुआत या अंत नहीं है.
तो संक्षेप में कहें तो ब्रह्मांड को या हम मनुष्यों को किसी भगवान ने नहीं बनाया.
यह आज तक सबसे बड़ा अनसुलझा रहस्य है कि यह सब कहां से आया, कैसे शुरू हुआ, कब शुरू हुआ इत्यादि.
और भगवान सिर्फ एक धारणा है जो मनुष्य के मस्तिष्क में निवास करती है और मनुष्यों ने भगवान को बनाया है…