मनुष्य की आवश्यकताएँ असीमित होती हैं. मनुष्य की इच्छाएँ और लालसाएँ अंतहीन हैं. मनुष्य कभी भी पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं होता है. जबकि इन इच्छाओं को पूरा करने वाले साधन सदैव सीमित होते हैं तथा इन साधनों के प्रयोग भी अलग-अलग प्रकार से किए जा सकते हैं. उदाहरण के लिए पानी का प्रयोग निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है:
- पीने के लिए
- कपड़े धोने के लिए
- गाड़ी धोने के लिए
- सिंचाई करने के लिए
- पशुओं को नहलाने के लिए
- बिजली बनाने के लिए
परंतु जब और जहाँ पर पानी की कमी होती है, उस स्थिति में हमें यह निर्णय लेना पड़ता है कि कौन से अति आवश्यक कार्यों के लिए पानी का प्रयोग पहले किया जाए. सभी प्रकार के सीमित साधनों में हमें इसी तरह चुनाव करने की समस्या का सामना करना पड़ता है और जो उसका सबसे उचित प्रयोग होता है हम उस प्रयोग का चुनाव करते हैं. इस प्रकार, कौन से साधनों का प्रयोग किया जाए और किस प्रकार किया जाए, हमें इस बात का चुनाव करना पड़ता है. अर्थशास्त्र में इस समस्या को चुनाव की समस्या, दुर्लभता की समस्या या आर्थिक समस्या कहा जाता है.
चुनाव की समस्या, दुर्लभता की समस्या या आर्थिक समस्या अर्थशास्त्र की मूल समस्या है. इसे निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है:-
- एक उपभोक्ता को अपनी सीमित आय के साथ यह चुनाव करना पड़ता है कि वह कौन सी वस्तुओं को खरीद कर उनका उपभोग करे ताकि उसकी संतुष्टि अधिकतम हो सके.
- एक उत्पादक को उसके पास उपलब्ध सीमित साधनों से यह चुनाव करना पड़ता है वह कौन से साधनों का कैसे प्रयोग करे ताकि उसका लाभ अधिकतम हो सके
- सरकार को यह चुनाव करना पड़ता है कि देश के संसाधनों का कैसे इष्टतम प्रयोग किया जाए ताकि सामाजिक कल्याण में वृद्धि हो और देश का विकास हो सके
इस प्रकार हम देखते हैं कि चुनाव की समस्या, दुर्लभता की समस्या या आर्थिक समस्या अर्थशास्त्र की मूल समस्या है.